Saturday 3 May 2014

हरियाणा में निराशा के विरुध जलती आशा की एक किरण




विद्या भूषण रावत 

आशा एक उम्मीद का नाम है. आज जब हम हरियाणा में दलित महिलाओ पे  लगातार  बढ़ रही हिंसा एवं बलात्कार की बड़ी घटनाओ पर विचार कर रहे हैं तो घनघोर निराशा में भी ऐसे लोग दिखाई देते हैं जिनसे आशा की किरण जलती दिखाई देती है. जो अपने दुःख भूलकर दुसरो  को हिम्मत बढ़ाने का कार्य करते हैं.  सितम्बर २०१२ में उनके गाँव से दबंगो ने उनका अपहरण कर दुष्कर्म किया और छोड़ के भाग गए. हिम्मती आशा किसी तरह से अपनी नानी के घर आई, लेकिन इतने बड़े दुराचार के बाद उसके अंदर कोई  हिम्मत नहीं थी की किसी को कुछ बता पाती। ऐसा लगा सब समाप्त हो गया क्योंकि किसी का भी सामना करने की हिम्मत नहीं बची. उसका स्वस्थ्य ख़राब हो गया. बहुत हिम्मत करके उसने एक हफ्ते बाद उसने अपने माता पिता को यह बात बताई। गाँव में गरीबी में भी अपनी बेटी को डाक्टर  बनाने का सपना देखने वाले पिता के लिए यह बहुत असहनीय था क्योंकि उन पर रिपोर्ट न करवाने और मामले को रफा दफा करने का दवाब पड़ रहा था इसलिए  अत्यंत दवाब में उन्होंने आत्महत्या कर ली. पिता के असामयिक मृत्यु के बाद आशा ने अपने साथ दुष्कर्म करने वालो से लड़ने की ठान ली और ऍफ़ आई आर दर्ज करवाई। मुश्किलो से झूझ रही आशा को उसकी माँ और भाई का पूरा सहयोग रहा. आज वह अपने  गम और तकलीफ भुलाकर हरयाणा में जातिवादी हिंसा का शिकार हो रही दलित लड़कियों के लिए लड़ रही है. पिछले दिनो में वह भागना के लड़कियों के संघर्ष में हिस्सा लेने के लिए दिल्ली आई और गृह मंत्री से भी मिली। आशा से मैंने विस्तार से बात की उसके संघर्शो को लेकर और  भविष्य की रणनीतियों को लेकर. एक सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर मैं   यह मानता हूँ के सेक्सुअल हिंसा का शिकार कोई भी महिला अपना वजूद नहीं  खोती लेकिन  भारत के कानूनो में महिला का नाम देना अपराध माना जाता है. मैं आशा की दिलेरी को सलाम करता हूँ लेकिन मुझे भी उनका असली नाम छुपाना पड रहा है. मुझे उम्मीद है के हरियाणा की ये बहादुर बेटी अपनी बहुत से बहिनो के लिए एक रोल मॉडल  है और  सबको इज्जत के साथ जिंदगी जीने की प्रेरणा देगी।  आशा के साथ प्रस्तुत है मेरी बातचीत :

प्रश्न :  अपने विषय मैं बताएं ? आपका बचपन कहाँ गुजरा और पिता क्या करते थे  ?

उत्तर : मेरा बचपन गाँव में गुजरा क्योंकि मेरे पिता खेती  करते थे. हम पूर्णतया भूमिहीन  परिवार थे और जीविकोपार्जन के लिए जाटो के खेतो में काम करना पड़ता था।  

प्रश्न :  आपके पिता ने मुशिकल हालातो में आपको पढ़ाया ? क्या सोचते थे वह आपके बारे में ? खासकर आपके भविष्य को लेकर ?

उत्तर : हाँ, मेरे पिता की माली हालत बहुत ख़राब थे लेकिन उन्होंने मुझे पढ़ाया। वो मुझे डाक्टर बनाना चाहते थे.


प्रश्न :  आप लोग पूरी  तरह से भूमिहीन परिवार थे. गाव् में दलित भूमिहीनों की क्या स्थिति है और उन्हें किस प्रकार की मुसीबते झेलनी पड़ती हैं ?

उत्तर : क्योंकि लगभग सभी दलित परिवर भूमिहीन हैं तो उनकी निर्भरता ऊँची जाती  के किसानो पर हैं जिनके यहाँ वे खेती करने जाते हैं। 

प्रश्न :  हरियाणा के गाव् में एक लड़की की जिंदगी कैसे है. गाँव् वाले महिलाओ को किस नज़र से देखते हैं ? किस प्रकार के असुरक्षा लड़कियों को देखनी पड़ती है ? क्या तुम्हारे पापा ने तुम्हारे इधर उधर जाने पर कभी रोक  टॉक लगाईं ?

उत्तर : हरियाणा में दलित लड़की होना पाप है क्योंकि ये लोग उसे कुछ समझते ही नहीं हैं और किसी भी हद तक जा सकते हैं। 

प्रश्न : आपके साथ जो हादसा हुआ वो कैसे हुआ ? उस वक़्त आप क्या  कर रही थी ? क्या आपने शोर किया ? क्या किसी ने आपको लेजाते देखा ?

उत्तर : ९ सितम्बर २०१२ का दिन था. लगभग २३० बजे  मैं अपनी नानी के यहाँ जा रही थी तभी रस्ते में मुझे अपहृत कर लिया गया. उन्होंने मुझसे कुछ नहीं कहा और खींचकर कार  में डाल  दिया। मैंने शोर मचाया लेकिन आस पास कोई नहीं था इसलिए कोई मदद भी नहीं हो सकी. मैं इतना जानती थी के वे लोग मेरे गाँव के ही थे.

 प्रश्न :  क्या आपको पहले से कोई धमकी मिल रही थी ? क्या उन लोगो से आपके या परिवार की कोई रंजिश थी ? कौन थे वे लोग जिन्होंने आपके ऊपर अत्याचार किया ?

उत्तर : नहीं मुझे पहले से कोई धमकी नहीं थी और न ही हमारा उनसे कोई लेना देना लेकिन वे गाँव की बड़ी जाती के लोग थे. हाँ हादसे के बाद उन्होंने पैसे के लें दें कर मामला दफ़न करने की कोशिश की और फिर सीधे  धमकी देना शुरू किया। उन्होंने सीधे सीधे  हमारे घर आकर हमें जान से मारने की धमकी दी. हरयाणा में दलितों के साथ ये अब  आम हो गया है.उनको लगता है के ये लोग कुछ नहीं कर पाएंगे।

प्रश्न : आपके साथ घटना के बाद आप अपनी नानी के यहाँ गयी।  क्या आप थोड़ा जानकारी दे सकते हैं। किस वक़्त ? क्या किसी ने आपको मदद की या आप अपने आप पैदल या गाड़ी ऑटो से घर गयी ?
 
उत्तर : मैं शाम को ७ बजे के समय नानी के यहाँ पहुंची। उन लोगो ने मुझे एक सुनसान जगह पे छोड़ दिया। मैंने किसी से लिफ्ट मांगी और स्कूटर पे पीछे बैठकर घर आ गयी.


प्रश्न : आपने अपने माता पिता को कब जानकारी दी के आपके साथ ऐसी घटना हुई है ? उनका क्या कहना था ? 

उत्तर : मैंने अपनी माँ को १८ तारीख को बताया और १९ को मेरे पिता ने  आत्म हत्या कर ली.

प्रश्न :  क्या पुलिस ने आपकी मदद की ? आपने मेडिकल कब करवाया ? डाक्टरों का रवैय्या कैसे था ? 

उत्तर : पुलिस का रवैय्या बिलकुल ही सहयोग वाला नहीं था. मेरे पिता की मौत के बाद ही मैंने  मेडिकल करवाया।


प्रश्न :  आपको हरियाणा सरकार की तरफ से क्या सहायता मिली ? क्या क्या वायदे किये गए थे ? क्या आप ने शासन को इस सन्दर्भ में लिखा ?

उत्तर : हरियाणा सरकार ने वायदे तो बहुत किये लेकिन हकीकत में कुछ भी नहीं किया। उन्होंने मुझे और मेरे भाई को नौकरी का वादा किया। हिसार में २०० गज का प्लाट और २५ लाख रुपैये की आर्थिक मदद की बात भी कही लेकिन कोई भी वादा पूरा नहीं हुआ. मैं और भाई नौकरी के वास्ते नेताओ के चक्कर लगाते  रहते हैं लेकिन उन्हें कोई मतलब नहीं। हरयाणा में दलितों के स्थिति बहुत ख़राब है और न कोई सुनने वाला है इसलिए अब लोगो को मदद करनी चाहिए। 


प्रश्न : अपने तरह की हिंसा का शिकार लड़कियों से आप क्या कहना चाहेगी ? ऐसे हादसों को रोकने में समाज के क्या भूमिका हो सकती है ? आपके साथ समाज और आपके साथियों का रवैय्या कैसे रहा ?

उत्तर : ऐसे हादसे किसी के साथ भी  सकते हैं लेकिन हमें अपना हौसला नहीं खोना खोना है और इस लड़ाई को बीच में नहीं छोड़ना है. हमें बनना होगा। समाज की भूमिका बहुत बड़ी है यदि हम दुष्कर्म की शिकार लड़कियों को गलत नज़रो से ना देखें। मेरा परिवार मेरे साथ खड़ा है और यह मेरी बहुत बड़ी ताकत है. हरियाणा में अधिकांश लडकिया जिनके साथ ऐसी घटना हुई है वे गरीब परिवार की है जिनका कोई सुनने वाला नहीं है क्योंकि समाज और परिवार भी उनके साथ खड़ा नहीं होता इसलिए उनकी तकलीफ ज्यादा होती है.  मैं उनकी आवाज बनना चाहती हूँ. हालाँकि ज्यादातर मामलो में समाज साथ है लेकिन कमेंट करने वालो की कमी नहीं है. 

मैं एक गर्ल्स कॉलेज में पढ़ती हूँ. मेरी कॉलेज की कुछ सहेलियां  तो दिन भर मेरे साथ रहती हैं लेकिन सभी तो अच्छे नहीं होते। शुरुआत में कुछ लड़कियों ने मुझ पर कमेंट किये तो मैंने अपने कालेज की प्रिंसिपल से शिकायत की और उनके तुरंत एक्शन लेने के कारण ऐसी घटनाएं बंद हो गयी.

प्रश्न : आपकी माँ और भाई आपके साथ खड़े हैं ? क्या कहना चाहेगी आप ऐसे माँ बापो को जिनके बच्चे इस प्रकार की हिंसा का शिकार होते हैं ?

 उत्तर : मैं खुशनसीब हूँ के मेरी माँ और भाई मेरे साथ खड़े हैं. मैं सभी से अनुरोध करुँगी के अपनी लड़कियों को जरूर पढ़ाएं और आगे  बढ़ने के  लिए प्रोत्साहित करें। अपने बच्चो को खासकर लड़कियों को मज़बूत करें और निराश न करें। मुझे दुःख है के मेरे पिता ने आत्महत्या की।  मैं कहना चाहती हूँ के कोई  भी जंग मर के नहीं जीती जाती। मैं ऐसे माबाप से कहना चाहती हूँ के वे अपने बच्चो को पूरा सपोर्ट करे और उन पर कोई नकारात्मक या व्यंगात्मक कमेंट न करे. मैं  मीडिया से भी कहना चाहती हूँ के वे ऐसे मामले उठाये और उन्हें मुकाम तक पहुंचाए। आज मुझे मीडिया  ने सपोर्ट किया तो मुझे ताकत मिली नहीं तो एक क्षण तो ऐसा था के मैं  हादसे के बाद पूरी तरह से टूट चुकी थी. 

प्रश्न : देश दुनिया में लोग आपको  पढ़ रहे हैं , क्या कोई अपील करना चाहेगी लोगो से ? 

उत्तर : अब जागने की जरुरत है ताकि और कोई लड़की इस प्रकार की  घटना का शिकार न हो. हरियाणा में दलितों की खासकर दलित महिलाओ की हालत बहुत  भयावह हैं और उन्हें किसी प्रकार की कोई सहायता नहीं है. अधिकांश दलित परिवार भूमिहीन हैं इसलिए उनकी बड़ी जातियों खासकर जाटो के ऊपर निर्भरता है।  प्रशाशन दलितों की मदद नहीं करता और जाट दलित महिलाओ को कुछ नहीं समझते इसलिए केवल सरकार पे निर्भरता से काम नहीं चलेगा। दुनिया भर के दलितों के  लिए लड़ने वाले लोगो से मेरी अपील है के हरियाणा की दलित लड़कियों और दलित समाज की आत्मसम्मान की लड़ाई को मज़बूत करें और उन्हें हर प्रकार की मदद उपलब्ध करवाएं। 

प्रश्न : आप भगाना की लड़कियों को न्याय दिलाने के लिए कड़ी हैं ? क्या कहेंगी इन लड़कियों और उनके माता पिता से ?

उत्तर: भगाना की लड़कियां मज़बूत है.हमें ये जंग जितनी है. मैं हरयाणा सरकार से अनुरोध करती हूँ की दलितों की भावनाओ को महसूस करे. मेरी प्रार्थना  है के इन लड़कियों को  न्याय मिले।


प्रश्न :  क्या आप हिसार कोर्ट के निर्णय से संतुष्ट हैं या चाहती हैं के पुलिस अपनेकेस को और मज़बूती से लड़े ?

उत्तर: कोर्ट के निर्णय से मैं बिलकुल संतुष्ट नहीं हूँ. मैं तो क्या कोई भी ऐसे निर्णय से संतुष्ट नहीं होगा। ऐसे निर्णय दर्द देने वाले होते हैं. पुलिस को अपना काम ठीक से करना चाहिए था. पुलिस अगर ठीक से काम करती तो ऐसे निर्णय नहीं आता. यदि आप डिसीज़न की कॉपी पढ़ेंगे तो आप को लगेगा के किस बिला पे छोड़ा गया है. वैसे कल कोर्ट ने दुबारा नोटिस जारी किया के ४ लोगो को बेल कैसे  देदी गयी. अब मुझे लग रहा है के न्याय होगा।

प्रश्न : आपका सपना।

उत्तर : मैं वकील बनना चाहती हूँ और साथ ही साथ सामाजिक आंदोलनों से जुड़ना चाहती  हूँ  ताकि मेरी जैसे लड़कियों को मदद मिल सके और उनका कोई शोषण न कर सके. मैं चाहती हूँ ऐसे अपराध न हो और इसके लिए हमें लड़कियों और समाज को  जागरूक करने की जरुरत है ताकि वे पढ लिख सके और अपना जीवन इज्जत से जी सकें। मेरा सपना  हिंसा की शिकार इन लड़कियों के लड़ाई लड़ना है ताकि वे अपने जिंदगी अच्छे से जी सके और उन्हें न्याय मिल सके. 

No comments:

Post a Comment